भगवान श्रीकृष्ण के कर्म पर उपदेश: जीवन का मार्गदर्शक

भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत बताया है। उन्होंने अर्जुन को युद्ध के मैदान में दिए अपने उपदेशों के माध्यम से यह सिखाया कि मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन कैसे करना चाहिए। इन शिक्षाओं में कर्म का महत्व, उसका उचित पालन, और कैसे कर्मफल से निर्लिप्त रहते हुए कार्य करना चाहिए, इस पर विशेष जोर दिया गया है। श्रीकृष्ण के उपदेश न केवल अर्जुन के लिए बल्कि समस्त मानवता के लिए जीवन जीने का आदर्श मार्ग प्रदान करते हैं।

1. कर्मयोग: निःस्वार्थ कर्म का सिद्धांत

भगवद गीता के अध्याय 2, श्लोक 47 में, श्रीकृष्ण कहते हैं:

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

इस श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मनुष्य का अधिकार केवल अपने कर्तव्य पर है, लेकिन उसके परिणाम पर नहीं। कर्म का फल क्या होगा, उसकी चिंता किए बिना, व्यक्ति को अपना कार्य करते रहना चाहिए। यह कर्मयोग का सार है, जिसमें निःस्वार्थ रूप से, बिना किसी फल की आसक्ति के, कार्य करना सर्वोत्तम मार्ग माना जाता है।

2. निष्काम कर्म: इच्छा रहित कर्म की महत्ता

भगवान श्रीकृष्ण निष्काम कर्म, यानी इच्छा रहित कर्म पर विशेष जोर देते हैं। भगवद गीता के अध्याय 3, श्लोक 9 में श्रीकृष्ण कहते हैं:

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर॥

यह श्लोक बताता है कि संसार में किया गया प्रत्येक कर्म बंधन पैदा करता है, जब तक कि वह कर्म यज्ञ (समर्पण) के लिए न हो। यज्ञार्थ कर्म ही वास्तविक मुक्ति का मार्ग है। इस प्रकार, श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि कर्म का उद्देश्य निःस्वार्थ सेवा होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति।

3. स्वधर्म का पालन

भगवद गीता के अध्याय 3, श्लोक 35 में श्रीकृष्ण कहते हैं:

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥

यहां श्रीकृष्ण बताते हैं कि अपने धर्म (कर्तव्य) का पालन करना, भले ही वह दोषपूर्ण हो, दूसरों के धर्म का पालन करने से उत्तम है। हर व्यक्ति का एक स्वधर्म (अपना कर्तव्य) होता है, और उसे उसी का पालन करना चाहिए। चाहे उसमें कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, अपने धर्म का पालन ही सही मार्ग है, क्योंकि दूसरे के धर्म का पालन भयावह हो सकता है।

4. कर्म और मोक्ष: आसक्ति से मुक्ति

भगवान श्रीकृष्ण कर्म के फल से मुक्त होकर कर्म करने पर विशेष जोर देते हैं। भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 11 में वे कहते हैं:

न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।
यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते॥

यह श्लोक बताता है कि कर्म का त्याग असंभव है, क्योंकि मनुष्य के जीवन का अस्तित्व ही कर्म पर निर्भर करता है। परंतु, जो व्यक्ति कर्म के फलों का त्याग करता है, वही सच्चा त्यागी माना जाता है। श्रीकृष्ण यह समझाते हैं कि कर्म का त्याग नहीं, बल्कि कर्म के परिणाम से आसक्ति का त्याग ही मोक्ष का मार्ग है।

5. कर्मचक्र और संसार में कर्म का महत्व

भगवद गीता के अध्याय 3, श्लोक 16 में श्रीकृष्ण कहते हैं:

एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति॥

श्रीकृष्ण के अनुसार, इस संसार का कर्मचक्र सतत रूप से चलता रहता है। जो व्यक्ति इस चक्र का पालन नहीं करता, वह केवल अपनी इंद्रियों की तृप्ति में लिप्त रहता है और उसका जीवन व्यर्थ होता है। कर्मचक्र का पालन न करना पाप का कारण बनता है। संसार में कर्म का महत्व इसलिए है, क्योंकि यही जीवन का आधार है और इससे विमुख होकर व्यक्ति अधर्म के पथ पर जाता है।

6. संतुलन और स्थिरता: कर्म का अंतिम उद्देश्य

भगवद गीता के अध्याय 5, श्लोक 10 में श्रीकृष्ण कहते हैं:

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा॥

श्रीकृष्ण यहां बताते हैं कि जो व्यक्ति अपने कर्मों को ब्रह्म (ईश्वर) को समर्पित करता है और आसक्ति को त्यागकर कर्म करता है, वह संसार के पापों से अछूता रहता है। जैसे जल कमल के पत्ते को प्रभावित नहीं करता, वैसे ही वह व्यक्ति संसार के बंधनों से मुक्त रहता है।

निष्कर्ष: कर्म का सही मार्ग

भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश हमें सिखाते हैं कि कर्म जीवन का मूलभूत सिद्धांत है, और इसे बिना किसी आसक्ति, स्वार्थ या फल की चिंता के करना ही सबसे सही तरीका है। जब व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता है, तो वह मोक्ष और शांति की ओर अग्रसर होता है। जीवन में संतुलन और स्थिरता तभी प्राप्त हो सकती है, जब हम अपने कर्तव्यों का पालन करें और उनके परिणामों से निरासक्त रहें। कर्म के माध्यम से ही व्यक्ति आत्मा की शुद्धि कर सकता है और ईश्वर के निकट पहुंच सकता है।

श्रीकृष्ण का कर्म सिद्धांत न केवल जीवन जीने की कला सिखाता है, बल्कि मनुष्य को सच्चे धर्म और आत्मिक विकास के मार्ग पर ले जाता है।

Post a Comment

Support Us with a Small Donation