शिव और सती की कथा | The Story of Shiva and Sati



पौराणिक पृष्ठभूमि

शिव पुराण हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पुराणों में से एक है, जिसमें भगवान शिव और उनके विभिन्न रूपों, लीला और उनके भक्तों की कथाएं वर्णित हैं। भगवान शिव, जो त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक हैं, सृष्टि, पालन और संहार के देवता माने जाते हैं। शिव पुराण में शिव जी के विवाह, उनकी तपस्या, उनके अवतार, और उनके साथ जुड़ी अनेकों कथाएं सम्मिलित हैं।

सती का जन्म और प्रारंभिक जीवन

दक्ष प्रजापति, जो ब्रह्मा जी के पुत्र और प्रजापति थे, की पुत्री सती का जन्म देवी शक्ति के अवतार के रूप में हुआ था। सती अत्यंत सुंदर और गुणों से संपन्न थीं। वे बचपन से ही भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं और उन्हें पति रूप में पाने का संकल्प ले चुकी थीं। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रेरित होकर, शिव जी ने उन्हें वरदान दिया कि वे ही उनके पति होंगे।

सती की तपस्या और विवाह

सती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की। उन्होंने कठोर व्रत और साधना की, जिससे प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें दर्शन दिया और उनके प्रेम को स्वीकार करते हुए विवाह का प्रस्ताव रखा। सती और शिव का विवाह अत्यंत धूमधाम और देवताओं की उपस्थिति में संपन्न हुआ। यह विवाह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिए एक महान उत्सव था। विवाह के बाद, शिव और सती कैलाश पर्वत पर स्थित अपने निवास में रहने लगे, जहाँ उन्होंने एक दूसरे के साथ आनन्दमय समय बिताया।

दक्ष का यज्ञ और अपमान

दक्ष प्रजापति एक बार एक भव्य यज्ञ का आयोजन कर रहे थे। उन्होंने अपने यज्ञ में सभी देवताओं और ऋषियों को निमंत्रित किया, परंतु भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। दक्ष, शिव जी को अपने समकक्ष नहीं मानते थे और उन्हें हमेशा तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे। इस अपमानजनक व्यवहार को सती सहन नहीं कर सकीं। उन्होंने अपने पिता से यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी, परंतु शिव जी ने उन्हें जाने से मना किया क्योंकि वे जानते थे कि दक्ष का व्यवहार अपमानजनक होगा।

सती का आत्मदाह

सती ने अपनी इच्छा से यज्ञ में जाने का निर्णय लिया और वहां पहुंचकर अपने पिता से शिव जी का अपमान करने का कारण पूछा। दक्ष ने उनके सामने ही भगवान शिव का अपमान किया, जिससे सती अत्यंत आहत हुईं। वे अपने पति का अपमान सहन नहीं कर सकीं और योग अग्नि में प्रवेश करके अपने प्राण त्याग दिए।

शिव का क्रोध और वीरभद्र का प्रकोप

सती के आत्मदाह की खबर सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो उठे। उनका क्रोध सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैल गया। उन्होंने अपने जटा से वीरभद्र और भद्रकाली नामक दो शक्तिशाली गणों को प्रकट किया और उन्हें दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने का आदेश दिया। वीरभद्र ने दक्ष के यज्ञ स्थल पर जाकर वहां तबाही मचा दी और दक्ष का सिर काट दिया।

शिव का शांत होना और दक्ष का पुनर्जीवन

ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं ने शिव जी को शांत करने का प्रयास किया और उनसे प्रार्थना की। शिव जी के क्रोध को शांत करने के लिए उन्होंने शिव की स्तुति की। उनके मनाने पर शिव जी ने अपने गणों को रोक दिया और दक्ष को पुनर्जीवित किया। शिव जी ने दक्ष के कटे सिर को एक बकरे के सिर से बदल दिया, जिससे वह पुनः जीवित हो गए।

सती का पुनर्जन्म और पार्वती का तप

सती ने हिमालय पर्वत के राजा हिमावन और रानी मैनावती के घर पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। पार्वती भी शिव जी की अनन्य भक्त थीं और उन्होंने शिव जी को पुनः पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, शिव जी ने उन्हें दर्शन दिया और उनके प्रेम को स्वीकार करते हुए उनसे विवाह किया।

शिव और पार्वती की महिमा

शिव और पार्वती का विवाह फिर से ब्रह्माण्ड के लिए एक महत्वपूर्ण घटना बनी। उनके मिलन से कार्तिकेय और गणेश का जन्म हुआ, जिन्होंने ब्रह्माण्ड में धर्म और न्याय की स्थापना की। इस कथा के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि प्रेम, भक्ति और त्याग से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है। सती और पार्वती की भक्ति और समर्पण ने यह सिद्ध कर दिया कि भगवान शिव स्वयं अपने भक्तों के प्रति कितने करुणामय और प्रेममय हैं।

इस प्रकार, शिव और सती की कथा प्रेम, त्याग, पुनर्जन्म और भक्ति की महिमा को दर्शाती है। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और प्रेम से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है और उनकी कृपा से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है।

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